स्नेह
के उत्तर में
है आवेश यदि तो
मनुजता
की यह बड़ी अवमानना है
हास्
व उपहास का अंतर
न समझे
तो
समझ लो तुमको जीवन जानना है
बहुत
कुछ दिखता नहीं होता है लेकिन
वायु का
भी रूप है स्वीकारना है
भाषा
में स्थान ऊँचा भाव का है
भाव
भाषा का तुम्हें पहचानना
है
जब
भी दुर्गम राह स्थिति हो जटिल तो
जान
लो कोई बड़ी संभावना है
जो
भी करना दृढ़ समर्पित होके करना
फिर
तो निश्चित पूरी होनी कामना है
अन्य
के हित तुमसे यदि सधते नहीं हैं
तुम्हीं
तक फिर क्या तुम्हारा मानना है
मात्र
जिह्वा से नहीं
करसे करो तुम
अन्यथा
कोरी ही सब सद्भावना है
पवन
तिवारी
२७/०४/२०२१
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