यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 31 मई 2022

एक प्रतिभा बस

एक  प्रतिभा  बस निरर्थक जा रही है

हाँ, घिसटती आगे भरसक जा रही है

वह  अनादर  झेलकर  पायेगी  आदर

जानती है वह सो अब तक जा रही है

 

जानता है, समय  उसका   रहा है

सो अंधेरों से  वो  लड़ता  जा  रहा है

भीड़ अंतिम दृश्य की ख़ातिर खड़ी है

इस कुटिलता से भी ना घबरा रहा है

 

स्वयं पर विश्वास  इतना कब रहा है

बैसवारे  का   निराला  जब  रहा है

सूर्य था वो आ  रहा है फिर उजाला

गज़ब है  संघर्ष  उस पर फब रहा है

 

स्वार्थी जग  उदित  को  पूजा सदा है

घृणित जग की आदि से ही ये अदा है

भोर का  आभास  प्रतिभा  दे  रही है

प्रतिभा के हीरों से उसका रथ लदा है

 

पवन तिवारी

१४/०७/२०२१    

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