जहाँ
तुम्हें कीचड़ दिखता है वहाँ हम धान उगाते हैं
जहाँ
तुम्हें ढेला दिखता है वहाँ हम मान उगाते है
हो डरते धूल से जिस तुम
उसे माथे लगाते हैं
है उसमें गाँव की ख़ुशबू
हम उसके संग गाते हैं
तुम्हें
निर्जन लगें जो
खेत उसमें जान बसती है
बड़ा
आनंद आता है जो सोंधी गंध
उठती है
फसल
जब लहलहाती है कभी मेंड़ों से देखो तुम
इन्हें
है देखना तो नगर के चश्में को फेंको तुम
तुम्हें
सचाई अल्हड़ता दिखेगी संस्कृति अपनी
कि
भारत गाँव में बसता इसी में पुण्य गति अपनी
जरा
ठहरो यहाँ कुछ दिन यहाँ की शाम को सुनना
यहाँ
की सादगी देखो
थोड़ी मासूमियत चुनना
नगर
जाने से पहले थोड़ा
लेना आदमीयत तुम
गाँव
को एक दिन हँसकर करोगे सब वसीयत तुम
अभी
तुम पर चढ़ी है धुन नगर की जान पाये तो
नगर
जाना कभी भी ना सदा दोगे नसीहत तुम
पवन
तिवारी
१२/०८/२०२१
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