मेरा
आना यहाँ ना अनायास है
वैरियों
को भी प्रतिभा का आभास है
शिल्प
वे ले गये मुझको दुःख है नहीं
पर
कथा का कथानक मेरे
पास है
कितने
दशकों से मैं शब्द चुनता रहा
धीरे
धीरे सही उनको बुनता
रहा
अब
कहानी की चादर झलकने लगी
इससे
पहले तलक सबको सुनता रहा
जब
लगे लोग केवल प्रसिद्धि में थे
अनवरत
कुछ लगे मात्र रिद्धि में थे
और
हम ब्रह्म की
साधना में लगे
सिद्ध
हो जाये वे उनकी सिद्धि में थे
ये
प्रशंसा मेरे हिस्से
अब आयी है
पहले
उपहास निंदा सहज आयी है
पथ
था लम्बा था दुर्गम डिगा पर नहीं
इसलिए सार्थकता
स्वयं आयी है
पवन
तिवारी
२४/०४/२०२१
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