अपने
संघर्ष पथ को नहीं छोड़ेंगे
आपसी
ताल - मेल नहीं तोड़ेगे
कैसे
प्रतिकूल मौसम रहें सामने
बिखरी
कड़ियों को जी-जान से जोड़ेंगे
गलतियों पर मगर
प्रेम से डाँटोगे
काँटों
को भी बड़े धीरे से
छाँटोगे
थमना
बिलकुल नहीं गति भले धीमी हो
निज
के हित के लिए तुम नहीं बाँटोगे
ऐसे
पथ से ही मानक गढ़ोगे
नये
ये
अलग बात दुःख कुछ सहोगे
नये
किन्तु
प्रतिहास में सुख मिलेगा तुम्हें
तुम
पुरातन भी होकर
रहोगे नये
तुमसे
आशा यही तुमपे
विश्वास है
शब्द
साधक से ही अब बची आस
है
दर्द
ढल जाता है
प्रेम
मिलता रहे
प्रेम
है, लागे सब
कुछ मेरे
पास है
पवन
तिवारी
०६/०६/२०२१
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