थोड़ा
- थोड़ा है अँधेरा थोड़ा – थोड़ा है उजाला
और
चिड़िया गा रही है इस समय को किसने पाला
ताज़गी बढ़ने लगी है
ज़िन्दगी जगने लगी है
इस तरह की कल्पना को
सत्य में किसने है ढाला
कोई
भी ऋतु हो या मौसम ये सुहाना क्षण है रहता
इस
समय तो हर किसी का ही अधर मुस्काके कहता
जगत
अलसाया सा रहता फिर भी इक उम्मीद रहती
दिवस
का आभास देता रात्रि का है दुर्ग ढहता
पुष्प
भी हैं खिलने लगते लोग
गति से चलने लगते
मंद
गति से हवा चलती बच्चे
भी लगने हैं जगते
सारे
लक्षण कर रहे संकेत नवल बिहान का
जो अंधेरों के पुजारी बेतहाशा से हैं भगते
जगत
में मासूम सी ऊर्जा का द्योतक प्रात
है
इसमें
प्रतिक्षण जिंदगी
की गेयता है गात है
इसका
अभिनन्दन सदा से होता है होता रहेगा
जिंदगी
को भरने वाली प्रात की हर बात है
पवन
तिवारी
०४/०६/२०२१
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