जेठ
की दोपहर सा जलाया मुझे
प्रेम
में इस तरह से रुलाया
मुझे
प्रेम
की चाह रखना सहज भाव है
पूस
की
ठंड जैसा सताया
मुझे
तुमने
ही सब से पहले बुलाया मुझे
मिलते
ही स्नेह तुमने जताया मुझे
तुमने
ही मुस्करा के कहा था प्रिये
आप
की हर अदा ने लुभाया मुझे
मैं
हूँ अब भी वही पर तुम्हें क्या हुआ
अपने
इस प्रेम को क्या लगी बददुआ
हमने
सम्मान सबका तुम्हारा किया
ऐसे में
दर्द ने दिल को कैसे छुआ
ये
जो तुम कर रही हो बुरा लग रहा
प्रेम
ही प्रेम को इस तरह ठग
रहा
प्रेम के
दर्द से कुछ रचूंगा
नया
मेरे
अंदर का नन्हा सा कवि जग रहा
पवन
तिवारी
०७/०७/२०२१
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें