यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 2 मई 2022

कभी कभी जीवन से लगता

कभी कभी जीवन से लगता जैसे बिछड़ गये

कभी कभी यूँ भी लगता  है जैसे बिखर गये

कभी कभी ऐसा लगता इतिहास रचेंगे हम

कभी कभी लगता है अपनी जड़ से उखड़ गये

 

कभी कभी रोना आता है कभी हैं हँस पड़ते

कभी कभी ऐसा होता  है बिना बात लड़ते

कभी कभी योजना बनाते हो जाता पर उल्टा

कभी कभी जिन्हें समझें अपना उन आँखों में गड़ते

 

कभी कभी  औरों  का आँसू  आँख देखकर  भर आती

कभी कभी अपनों से हिक़ारत औरों से जी नेह बाती

कभी कभी कुछ अप्रत्याशित घटता सबके जीवन में 

कभी कभी अपने हिस्से की खुशियाँ कहीं और जाती

 

ये सारी बातें मिल करके जीवन एक बनाती हैं

भिन्न भिन्न घटनाएं मिलकर जीवन पुष्प खिलाती हैं

सो जो भी मिलता लुटता है सहज भाव स्वीकार करो

फिर देखो जिंदगी प्यार से कैसे तुम्हें हँसाती है

 

 

पवन तिवारी

१८/०३/२०२१

 

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