दर्द
बदन
में नहीं पर पीर बहुत है
वो
दूर होके भी लगे नजदीक बहुत है
जाने
ही कितनी बार उसने धोखा दिया है
फिर
भी उसी पे मरता ये मजबूर बहुत है
वो सच्चा प्यार करती
है ये झूठ बहुत है
बाहर
सहज दिखती है मगरूर बहुत
है
वो
हँस के बात करती है सब ही फ़िदा होते
कितनों
को लगे मेरी पर दूर बहुत है
बहुतों
से कहती रहती है कि प्यार बहुत है
कई बात फ़साने
में फँसती भी
बहुत है
जिसकी
थी विधि विधान से उसको भी छल गयी
बनती
है वो सीता मगर बदमाश बहुत है
बाहर
से दिखता ज़िन्दगी में प्यार बहुत है
सच पूछिए तो अंदर
तकरार बहुत है
कितना
रुलाया प्यार को उसने न पूछिए
इस ज़िंदगी
में दुःख का
संसार बहुत है
पवन तिवारी
२३/०४/२०२१
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