गुस्से
में आज-कल मैं खुद ही को डाँटता हूँ
होता
अकेले में तो मैं खुद
को हाँकता हूँ
बहुत
ही अकेले हैं मेरे आस
- पास लोग
थोड़ा
ही थोड़ा उनमें मैं खुद को बाँटता हूँ
खुशियाँ बिखेरने में इतना
बिखर गया
लोगों
से थोड़ा थोड़ा अब खुद को माँगता हूँ
रिश्ते
बनाने में ही कुछ फ़ैल गया
ज्यादा
रिश्तों
से थोड़ा थोड़ा अब खुद को छाँटता हूँ
बीमारी बुराई
की कोरोना सी
फ़ैली
अब
थोड़ा-थोड़ा खुद को मैं रोज जाँचता हूँ
नौकरी
मिली नहीं सो
पेट की ख़ातिर
खुद
को कहानियों में मैं रोज बाँचता हूँ
कुछ
ही दिनों मैं नेता जी के साथ क्या रहा
खाली
समय में
अक्सर जुबान फाँकता हूँ
पहले
तो उसे देख
के भी देखता
न था
जब
से हुआ है प्यार खिड़की से झाँकता हूँ
पवन
तिवारी
०७/०४/२०२१
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें