वैभव
अब तो अतीत हो गया
गाँव
भी अब भयभीत हो गया
सहमी
सहमी शीत हो गयी
ताप
तो दैत्याकार हो गया
कुएँ
न जाने कब के मर गये
गाँवों
से हैं गिद्ध भी डर गये
तालाबों
का हाल न पूछो
मिट्टी
वाले सारे घर गये
रौनक
त्योहारों की गोल है
अर्थ
से ही अब मेल जोल है
सज्जनता
कब से घायल है
दुर्लभ
बिन स्वारथ के बोल है
चूल्हे
की हो गयी बिदाई
कोने
में कहीं पड़ी है माई
जिसका
मर्द कमाता पैसा
वही
बहुरिया घर में छाई
गुड़
रस माठा हो गये फेल
शीत
पेय की रेलम रेल
गुल्ली
डंडा हाकी भूले
किरकेट
ही अब राष्ट्र का खेल
पालागी
प्रमाण पिछड़े हैं
हाय
बाय हैल्लो अगड़े हैं
साइकिल
पड़ी-पड़ी ऊँघे है
अब
तो गाड़ी के झगड़े हैं
गाँव
में ही बाज़ार आ गया
सड़क
पे ही घर बार आ गया
सारे
सम्बन्धों में शर्तें
रिश्तों
में व्यापार आ गया
पवन
तिवारी
१/०४/२०२१
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