युद्ध
चल रहा अधिकारों का
समय
चल रहा प्रतिकारों का
ऐसे
में है शिथिलता वैरी
काल
चल रहा ललकारों का
चारो
दिशा स्वार्थ बिखरा है
नैतिकता
को यह अखरा है
पर
उसकी अब कौन सुने हैं
हर
कोई कहता खरा खरा है
कर्तव्यों
पर मौन जड़ा है
कलयुग
हर चौखट पे खड़ा है
धर्म
नीति संयम घायल
है
औंधे
मुँह भी सत्य
पड़ा है
ऐसे
में बस कर्म
प्रमुख है
लड़कर
मर जाना भी सुख है
कायर
सा छुपना और रोना
इससे
बड़ा न कोई दुःख है
पवन
तिवारी
१६/०४/२०२१
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