इस
बदन में जगत के सभी जोग हैं
ये
बदन जोगी है इसमें सब जोग हैं
सच
के अंकुश से संचलित आचरण
अन्यथा
इस बदन में ही सब रोग हैं
हैं
ये दूषित बदन तो ये पावन भी है
है
ये मरुथल अगर तो ये सावन भी है
द्वेष
की यदि शिरा प्रेम की धमनियाँ
बाहरी
आवरण मन भावन
भी है
ये बदन सृष्टि
का पुण्यतम कर्म है
इस
बदन से ही जीवित जगत धर्म है
कोसना
त्याग कर ध्यान इसका धरें
है ये दर्शन
ये सबसे बड़ा मर्म
है
हम
हैं लौकिक हैं भौतिक इसे मान लें
कुछ
अलौकिक नहीं है यहा जान लें
माया
अध्यात्म खिचड़ी पकाएं नहीं
एक पथ पर चलें आज
ये ठान लें
इसके
स्वभाव का आचरण कीजिये
प्रेम
है मूल इसका वरण कीजिए
सारे
प्रश्नों के उत्तर
मिलेंगे सहज
स्वयं
के मात्र इसके शरण कीजिये
पवन
तिवारी
१८/०४/२०२१
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