भर
देते हो मन की गागर
प्रति
विपदा का करें निवारण
कान्चनाभ
हो नेह के सागर
हे
सुरार्चित मंगल कारक
पीड़ा
के भंजक हित कारक
दैविक,दैहिक
या भौतिक हो
सबके
हो प्रभु आप निवारक
दुर्लभ
को तुम सुलभ कराते
उजड़े
को श्रीमंत कराते
धीर
शूर करुणाकर सुचये
कलयुग
को भी नाच नचाते
वागधीश
प्रभु शरण तुम्हारे
तुम
निर्धन के पालन हारे
वाग्मिने
महिमा अति न्यारी
शरण
गहो प्राज्ञाय हमारे
पवन
तिवारी
३०/०३/२०२१,
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