यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 14 अप्रैल 2022

मुझसे लड़ते लड़ते लड़ते

मुझसे लड़ते लड़ते लड़ते

विपदाओं पर विपदा आयी

दुःख विचलित करने चला मुझे

उसकी भी बाहें भर आयी

 

त्रासदियों  की घटनाओं का

कोई ओर न था कोई छोर न था

ऐसा लगता अंधियारा बस

अब भोर पे कोई जोर न था

 

मेरा पथ बिलकुल अलबेला

कुछ फब्तियाँ थी कुछ ताने थे

हिंदी से प्रेम किया  था सो

अपमान मिले जो खाने थे

 

जैसे – जैसे बढ़ता था मैं

पथ होता जाता था संकरा

कुछ पीछे से चिल्लाते थे

क्यों बनता है बलि का बकरा

 

मैं सहज भाव से बिन सोचे

भाषा की उंगली थाम लिया

गीत कहानी हिंदी कविता

जैसे  चारो   धाम   लिया

 

साथ चलूँगा कविता के  मैं

सब दुत्कारे सब कोसे थे

देख  मेरा साहित्य से नाता 

हमसे अपने तक  रोषे थे

 

माता भगिनी भ्राता सन्तति

सबके सब ही मुख मोड़े थे

भार्या की बात कहूँ  मैं क्या

उसने  संबंध ही तोड़े थे

 

कितने कटु वचन सुने प्रतिदिन

कितनी पीड़ाएं झेली हैं

ये  आभा तब जाकर आयी

खुशियाँ अब आँगन खेली हैं

 

 

पहले अनाथ सा लगा रहा

अब संबंधी उग आये हैं

जो पागल कल तक कहते थे

अब गीत  हमारे  गाये हैं  

 

पवन तिवारी

३१/०३/२०२१

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