नैतिकता का हुआ विसर्जन
करते सब स्वारथ का अर्जन
सत्य पड़ा चुपचाप अकेला
चारो
ओर झूठ का गर्जन
हड़प
भाव औ भाव में तर्जन
नहीं चाहता
कोई सर्जन
जैसे भी
आता है आये
धन
से नहीं किसी को वर्जन
कौन
करे अब सच का अर्चन
अभिलाषा है
माया दर्शन
पावन
कला विलाप कर रही
आडम्बर
का चहुँदिशि नर्तन
रिश्ते हुए काँच
के बर्तन
टूटे जुड़े
रोज हैं दर्जन
कोई
भी झुकना
न चाहे
सब करना चाहें
हैं मर्दन
आज
बुरा वो
जो है दर्पण
मजबूरी में
करते अर्पण
भाव
सूचियाँ छल से प्लावित
प्रेम
कहाँ है कहाँ समर्पण
पवन
तिवारी
१२/०४/२०२१
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