रात की धूप सा तेरा माथा
पवन भी गाये तेरी गाथा
जल में जो तेरी शक्ल उभरती
जल भी देख कर जलने लगता
कुछ ऐसा सौंदर्य है तेरा
साँच कहूँ लागे क्या मेरा
नैनों में तेरे दर्पण है
गोल गोल बड़ा सुंदर लगता
हाथों में जादुई छुअन है
अधर लगे ज्यों खिला सुमन है
मोहित होना सहज ही सबका
मानस तेरा भूप सा लगता
है उरोज मलयागिरि पर्वत
प्रति प्रति शब्द है तेरा शरबत
कमल के जैसी आभा तेरी
शशि जैसा कुछ रूप है लगता
रूप है तेरे रूप से जलता
तेरे संग बसंत है चलता
सुंदरता से भी तू सुंदर
प्रति-प्रति अंग दिव्य सा लगता
पवन तिवारी
२६/०३/२०२१
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