दुःख
से भरे हैं
सुख प्यासे हैं
चेहरे
बहुत रुआँसे
हैं
जीवन
अंदर खोजें बाहर
गाँव
से नगर तलाशे
हैं
स्वारथ
जहाँ वही
साधे हैं
उनको ही कंधे
लादे हैं
बोझिल
है दुःख वर्तमान से
सुख की
केवल यादें हैं
विश्वासों की
हानि हुई है
हर
रिश्ता अब छुईमुई है
मिलते
हैं प्रपंच छल पग पग
चुभते
हैं ज्यों सूक्ष्म सुई है
चारो
ओर अँधेरा
लगता
शक
का मात्र बसेरा लगता
ऐसे
में कोई जिए भी कैसे
हर
कोई चतुर सपेरा लगता
जीना
है तो धैर्य को धर लो
संघर्षों को
साथी वर लो
परिणामों
की छोड़ के चिंता
बढ़ते
रहने की जिद कर लो
फिर
कुछ ना कुछ सुखमय होगा
कुछ उन्नति तो
कुछ क्षय होगा
जिजीविषा को
पाले रखना
सहज
ही पथ लम्बा तय होगा
पवन
तिवारी
१३/०४/२०२१
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