यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 5 अप्रैल 2022

प्रति प्रात ही पंछी चहकते

प्रति प्रात ही पंछी चहकते

और झोंके भी बहकते

भानु भी प्रतिदिन हैं आते

पुष्प भी प्रतिदिन महकते

 

 

पवन भी चलता निरंतर

रात्रि में ना कोई अंतर

शीत, वर्षा, ग्रीष्म आती

इनको रोके कौन जंतर

 

 

अब भी पर्वत कुछ न कहता

सारी पीड़ाओं को सहता  

शशि था जैसा वैसा ही है

अब भी घटता बढ़ता रहता

 

 

दुख हजारों सह रही हैं

फिर भी नदियां बह रही हैं

केलों से करुणा नहीं है

बेरें अब भी कह रही हैं

 

 

तू भी बढ़ता चल चला चल

देख सरिता का यह कल कल

समय को रुकते हैं देखा

चलता रहता ही है पल-पल

 

 

कर्म में विश्वास रख तू

दृढ़ता से हर चाप रख तू

ध्येय होना सिद्ध निश्चित

स्वयं से बस आस रख तू

 

पवन तिवारी

२८/०३/२०२१

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