यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 5 अप्रैल 2022

सबकी अपनी पीड़ाएं हैं

सबकी अपनी पीड़ाएं हैं

सबके अपने कारण हैं

सबकी अपनी राज रियासत

सबके अपने चारण हैं

 

 

दुख के भी हैं रंग अनोखे

कुछ जो देखन में हैं चोखे

पर पथ उनके एक से लगते

ज्यादातर के कारण धोखे

 

 

बिन पीड़ा के लगे अधूरे

केवल सुख से भी ना पूरे

जिनको केवल दुख ही दुख है

उनसे भी सब दूरे - दूरे

 

 

राज रोग की पदवी दुख को

और पुछल्ले मिले हैं सुख को

मरना जीना दुख हो या सुख

स्वाद चाहिए केवल मुख को

 

 

झूल रहे सब तुम भी झूलो

दुख सुख में ही दुनिया छूलो

मुरझाना तो सबको एक दिन

जब तक हो फूलों से फूलो

 

पवन तिवारी

२९/०३/२०२१

 

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