जिसके लिए ही सजते धजते
जिसके
लिए ही सब कुछ तजते
वे
ही जब तजते हैं तुमको
तब
हिय के बारह हैं बजते
इसलिए
समन्वय सदा रखो
हित
और अनहित सब सोच भखो
सम्बंध
न त्याजो इक के लिए
सबमें
थोड़ा सा स्नेह चखो
कब
कौन कहाँ काम आ जाये
किसका
स्वर किसको भा जाये
है
भाग्य बहुत ही मायावी
निर्धन
नरेश सा छा जाये
मित्रता
की खिड़की खुली रखो
नीयत
की आँखें धुली रखो
बिगड़ी
बातें बन जायेंगी
भाषा
भी नपी तुली रखो
पवन
तिवारी
०६/०२/२०२१
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