यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शनिवार, 2 अप्रैल 2022

जिसके लिए ही सजते धजते

जिसके लिए ही सजते धजते

जिसके लिए ही सब कुछ तजते

वे ही जब तजते हैं तुमको

तब हिय के बारह हैं बजते  

 

इसलिए समन्वय सदा रखो

हित और अनहित सब सोच भखो

सम्बंध न त्याजो इक के लिए

सबमें थोड़ा सा स्नेह चखो

 

कब कौन कहाँ काम आ जाये

किसका स्वर किसको भा जाये

है भाग्य बहुत ही मायावी

निर्धन नरेश सा छा जाये

 

मित्रता की खिड़की खुली रखो

नीयत की आँखें धुली रखो

बिगड़ी बातें बन जायेंगी

भाषा भी नपी तुली रखो

 

पवन तिवारी

०६/०२/२०२१  

 

 

 

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