मैं जो कहने जा रहा हूँ
वह बहुत आसान बात है
पर आसान बात
कोई समझना नहीं चाहता
इसीलिए प्रेम का आरंभ
हमेशा गलत होता है
हर किसी के अंदर
प्रेम है किंतु
वह दूसरे से करता है
बहुत लोग अपना प्रेम यूँ ही
दूसरे के द्वार पर
छोड़ आते हैं
क्या पता कर ले कभी स्वीकार
कई बार जब प्रेम
अस्वीकार कर दिया जाता है
या सौंपे हुए प्रेम के बदले
मिलता है छल या अपमान
ऐसे में सामने दिखाई देते हैं
दो मार्ग !
एक स्वयं को कर लेना खत्म या विक्षिप्त
दूसरा स्वयं को प्रेम करने का आरंभ
अपना प्रेम पहले स्वयं को
यदि कर सके समर्पित तो
आप प्रेम में कभी विक्षिप्त नहीं होंगे !
०३/०२/२०२१
पवन तिवारी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें