यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 7 मार्च 2022

प्रेम में विक्षिप्त

मैं जो कहने जा रहा हूँ

वह बहुत आसान बात है

पर आसान बात

कोई समझना नहीं चाहता

इसीलिए प्रेम का आरंभ

हमेशा गलत होता है

हर किसी के अंदर

प्रेम है किंतु

वह दूसरे से करता है

बहुत लोग अपना प्रेम यूँ ही

दूसरे के द्वार पर

छोड़ आते हैं

क्या पता कर ले कभी स्वीकार

कई बार जब प्रेम

अस्वीकार कर दिया जाता है

या सौंपे हुए प्रेम के बदले

मिलता है छल या अपमान

ऐसे में सामने दिखाई देते हैं

दो मार्ग !

एक स्वयं को कर लेना खत्म या विक्षिप्त

दूसरा स्वयं को प्रेम करने का आरंभ

अपना प्रेम पहले स्वयं को

यदि कर सके समर्पित तो

आप प्रेम में कभी विक्षिप्त नहीं होंगे !

 

 

०३/०२/२०२१

 

पवन तिवारी

 

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