नयी
चुनौती रोज है आती
नये
– नये किस्से बतलाती
हम
उसमें उलझे रहते हैं
तब
तक नयी कहानी लाती
ठोकर
देकर है समझाती
क्षणिक
ख़ुशी देकर इठलाती
अक्सर
चक्रव्यूह रचती है
फँस
जाने पर मगन हो जाती
बुनते
रोज नये सपने
हैं
उन्हें
तोड़ते जो अपने
हैं
फिर
भी होनी होकर रहती
छप
ही जाते जो छपने हैं
जीवन
रोज अचम्भित करता
नये
– नये वो रंग है
भरता
उसे
देख मोहित हो जाते
यहीं
से जीवन में दुःख झरता
फिर
भी हर कोई जीना चाहे
यहाँ
न कोई मरना चाहे
सबको
खाली हाथ है जाना
फिर
भी सब कुछ भरना चाहे
पवन
तिवारी
२५/०३/२०२१
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