इस
राजनीति की नीति बहुत खलती है
अब
भारत की कोमल आशा जलती है
अपनों
के कारण उर जब दग्ध रहा है
कुछ
कहने आ जाते प्रारब्ध रहा है
बलिदानों
की पीठ पे जो हँसकर चढ़ते
निश्चित
कलंक के दलदल में हैं वे धँसते
इतिहास
के पन्नों में वे काले होते हैं
अपने
ही वंशज से धिक् धिक् होते हैं
भुज
के बल से मन के बल से चलना होगा
गंगा
की पावन कल-कल सा बहना होगा
लेकर
प्रकाश हम सविता से अधिंयारा छाटेंगे
निज
ओज भरी कविता से हम सन्नाटा काटेंगे
जनहित
के प्रतिरोधों में हम आगे होंगे
अंधियारों
पग कोटि कोटि धम-धम होंगे
इस
मिट्टी को शोणित क्या है भाल समर्पित
अपना
अखण्ड जय राष्ट्र रहे सब अर्पित है
आओ
मिलकर तीन रंग का ध्वज फहरायें
प्रति
- प्रति से आवाहन है जय जय गायें
हुंकारें
यूँ भारत के
स्वर नभ तक जायें
दिनकर
उदगण शशि भी सारे संग संग गायें
पवन
तिवारी
२/०२/२०२१
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें