यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 10 मार्च 2022

मन में छल था

मन में छल था सो कमियाँ लगे ढूंढने

डोर   विश्वास   की  ही   लगे  लूटने

 

रूठने फक्त दौलत  की  ख़ातिर  लगे

रिश्ता मतलब का था सो लगा टूटने

 

मैं  तेरा  फ़क्त  था  मैं तेरे  पास था

फासला कर दिया इक  तेरे  झूठ ने

 

ग़ैर को रिश्ते का  था  पता दे दिया

ज़ख्म गहरा  किया  आपसी फूट ने

 

यादों  के  सूखे  से  सारे  पत्ते दिखे

प्यार  के  सारे  किस्से  लगे  छूटने

 

जिसने तोड़ा हो दिल उससे जुड़ता नहीं

एक  हिस्सा  उल्ट  लगता  है  सूखने

 

अर्थ की भूख ने तुझको क्या कर दिया

तेरा हर हिस्सा खुलकर लगा  चीखने

 

सोचे बिन जो किया सो मिला ये सिला

दाग़  तुझको  दिया  तेरी  इक  चुक ने

 

पवन तिवारी

०२/०२/२०२१     

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