सवेरे
- सवेरे हवा आ रही है
उसे
देख करके सुबह गा रही है
मुंडेरे
का मुर्गा मगन हो रहा है
यह
देख भू भी ख़ुशी पा रही है
ये चहचहाना चिड़ियों का गाना
भोरे-भोरे
छत पर चुग आना दाना
लिए
लालिमा उगते रवि देखना जी
लगे
प्रात में ज्यों खजाने का पाना
सर्दी
में पीली-पीली धूप का खाना
रजाई
में रहने का, प्यारा बहाना
सर्दी
की भोर बड़ी अल्हड़ है होती
भोरे-भोरे
कोहरे का होता जमाना
ओ
भोर, सुनना, तुझसे है मिलना
तू
सबसे प्यारी है तुझसे है कहना
तेरा
रंग रूप तेरी पावन कहानी
सुन
भोर हँसती सी ऐसी ही रहना
पवन
तिवारी
संवाद-
७७१८०८०९७८
०७/१२/२०२०
गोरखपुर
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