यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 3 फ़रवरी 2022

सवेरे - सवेरे हवा आ रही है

सवेरे - सवेरे हवा   रही  है

उसे देख करके सुबह गा रही है

मुंडेरे का मुर्गा मगन हो रहा है

यह देख भू भी ख़ुशी पा रही है

 

ये  चहचहाना  चिड़ियों  का  गाना

भोरे-भोरे छत पर  चुग आना दाना

लिए लालिमा उगते रवि देखना जी

लगे प्रात में ज्यों  खजाने  का पाना

 

सर्दी में पीली-पीली धूप का खाना

रजाई  में रहने का, प्यारा बहाना

सर्दी की भोर बड़ी अल्हड़ है होती

भोरे-भोरे कोहरे का होता जमाना

 

ओ भोर, सुनना, तुझसे है मिलना

तू सबसे प्यारी है तुझसे है कहना

तेरा रंग रूप तेरी पावन कहानी

सुन भोर हँसती सी ऐसी ही रहना

 

पवन तिवारी

संवाद- ७७१८०८०९७८

०७/१२/२०२० गोरखपुर

 

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