यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2022

पुस्तक

काफी दिनों से मुझे नींद नहीं आती,

मतलब कम आती है!

दिमाग पर जोर देकर सोचता हूँ तो,

पता चलता है, जब से पुस्तकें

पढ़ना शुरू किया,

उन पुस्तकों में विचार थे ;

वे विचार, मेरे मस्तिष्क को सोने नहीं देते!

सुना हूँ, जब तक मस्तिष्क जागता है

आदमी भी जागता है.

कुछ मुझे विद्रोही कहते हैं.

क्योंकि पुस्तकें विद्रोही होती हैं.

वे ग़लत सहन नहीं कर पाती.

इसलिए कई सरकारें, पुस्तकों को

डाल देती हैं कारागृह में .

लगा देती हैं पाबंदी का ताला.

अब जो मैं, थोड़ा सा सोता हूँ

उसका मतलब है कि

अब मैं अपने विचारों को

लिख देता हूँ पुस्तकों में!

ताकि दूसरों को भी जगा सकूँ !

पाया हुआ लौटाना ही तो ज़िन्दगी है .

सो एक पाठक से लेखक हुआ

ताकि, फिर पाठक जन्म ले सके.

हो सकता है –

मेरी बात फालतू लगे

क्योंकि, एक वर्ग लेखक को

यही समझता है !

इसीलिये कुछ लोग, पुस्तकों को (विचारों को )

आलमारी से रद्दी में

फेंक रहे हैं और

खाली हो रहे हैं विचारों से

सुनता हूँ भेड़ें

विचार से खाली होती हैं .

 

 

पवन तिवारी

१७/१२/२०२०  

 

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