ज़िन्दगी
और भी तो गाती
है
कौन
कहता कि बस, सताती है
दुःख
तो स्थायी साथी है उसका
किन्तु
सुख को भी लेके आती है
यही
जो दुःख में गुनगुनाती है
रोती
खुद ग़ैर को हँसाती है
लोग
यूँ ही नहीं
मरते इसपे
ख़ुशी
में भी गज़ब रुलाती है
ज़िन्दगी
के लिए मरते कितने
ज़िन्दगी
के लिए गिरते कितने
ज़िन्दगी
को कहे जग जाने क्या
ज़िन्दगी
पा के निखरते कितने
क्या
कहूँ तुझको लाजवाब है तू
नहीं
हिसाब
बेहिसाब है तू
तेरे
बिन शून्य है जगत
सारा
प्रकृति
का श्रेष्ठतम जवाब है तू
पवन
तिवारी
संवाद-
७७१८०८०९७८
१६/१२/२०२०
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