यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 7 फ़रवरी 2022

तेरी आँखों में समन्दर ठहरा

तेरी आँखों  में  समन्दर   ठहरा

सबको  मालूम   समन्दर  गहरा

पीड़ा को  दूर से  आभास  किया

क्योंकि पलकों ने रखा था पहरा

 

प्रेम  में  यूँ  ही  दर्द मिलता है

प्रेम में अपना कोई छलता है

आग दिखती नहीं जमाने को

किन्तु उर धीरे-धीरे जलता है

 

मैं भी राही हूँ तेरे ही पथ का

मैं मैं भी पहिया हूँ प्रेम के रथ का

एक पहिये ने साथ छोड़ दिया

मैं भी उलझन में करूँ क्या रथ का

 

तेरी पीड़ा को बाँटना चाहूँ

दर्द की डोर काटना चाहूँ

तेरी अनुमति की बस प्रतीक्षा है

दर्द  से  दर्द  पाटना  चाहूँ   

 

 

आजा मिलके कि दोनों रोते हैं

रोते-रोते ही गम को खोते हैं

चेहरे पर जो उदासी छायी है

आँसुओं से ही उसको धोते हैं

 

झटक  के  दुःख  कि  आओ हँसते हैं

मिल के दोनों ही दुःख  को कसते हैं

बात  करने  से   ही   गलेगा   गम

आओ  उल्टा  ही  गम  को डसते हैं

 

पवन तिवारी

२९/१२/२०२०  

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें