तेरी
आँखों में समन्दर ठहरा
सबको
मालूम
समन्दर गहरा
पीड़ा
को दूर से आभास किया
क्योंकि
पलकों ने रखा था पहरा
प्रेम
में यूँ ही दर्द मिलता है
प्रेम
में अपना कोई छलता है
आग
दिखती नहीं जमाने को
किन्तु
उर धीरे-धीरे जलता है
मैं
भी राही हूँ तेरे ही पथ का
मैं
मैं भी पहिया हूँ प्रेम के रथ का
एक
पहिये ने साथ छोड़ दिया
मैं
भी उलझन में करूँ क्या रथ का
तेरी
पीड़ा को बाँटना चाहूँ
दर्द
की डोर काटना चाहूँ
तेरी
अनुमति की बस प्रतीक्षा है
दर्द से
दर्द पाटना चाहूँ
आजा
मिलके कि दोनों रोते हैं
रोते-रोते
ही गम को खोते हैं
चेहरे
पर जो उदासी छायी है
आँसुओं
से ही उसको धोते हैं
झटक के
दुःख कि आओ हँसते हैं
मिल
के दोनों ही दुःख को कसते हैं
बात करने
से ही गलेगा गम
आओ उल्टा ही गम को डसते हैं
पवन
तिवारी
२९/१२/२०२०
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