पिता
और बच्चे
पिता
के जब सपने
मरते हैं बच्चों के सपने फलते हैं
बच्चे
खुलकर हँसते
हैं तब पिता
स्वेद जब जब बहते हैं
पिता
सहज ही दुःख अपनाते तब बच्चे खुशियाँ
पाते हैं
पिता
कमाकर घर लाते जब बच्चे छक कर तब खाते हैं
अपने
मन को जब जब मारा तब बच्चों का मन
पाते हैं
फिर
भी बच्चे
स्नेह करें ना
पिता
कहीं तब झुंझलाते हैं
सारी
दुनिया से लड़कर वे जीत को आखिर घर लाते हैं
गिरते
थक करके खटिया पर बच्चे हँसकर बतियाते
हैं
कब
बच्चों ने पिता को समझा बने पिता तब समझ में आया
तब
तक देर हो चुकी होती पिता को खोकर पिता को पाया
ढोते तुम
कठोर की संज्ञा, नेह
से तुम वंचित रह
जाते
अम्मा
– अम्मा गूँजा करता तुम केवल
दायित्व निभाते
बच्चे
केवल फरमाइश
तक
पिता
के
पास ठहरते हैं
अगले
क्षण अम्मा - अम्मा कर
माँ
का
आँचल भरते हैं
थोड़ा
सा ही पिता के हिस्से स्नेह को धरना
अम्मा
के तुम रहो दुलारे किन्तु पिता के पास भी रहना
पवन
तिवारी
संवाद
: ७७१८०८०९७८
१२/१०/२०२०
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