यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 18 जनवरी 2022

पिता और बच्चे

पिता और बच्चे

 

पिता  के  जब  सपने  मरते  हैं बच्चों  के  सपने   फलते  हैं 

बच्चे   खुलकर  हँसते  हैं  तब  पिता स्वेद जब जब बहते हैं

पिता सहज ही दुःख अपनाते तब  बच्चे  खुशियाँ  पाते  हैं

 पिता  कमाकर घर लाते जब बच्चे  छक कर तब खाते  हैं

 

अपने मन को जब जब मारा तब  बच्चों  का मन  पाते  हैं  

फिर भी  बच्चे  स्नेह  करें  ना पिता कहीं तब  झुंझलाते हैं 

सारी दुनिया से  लड़कर  वे जीत को आखिर घर लाते हैं

गिरते थक करके खटिया पर बच्चे  हँसकर    बतियाते  हैं

 

कब बच्चों ने पिता को समझा बने पिता तब समझ में आया

तब तक देर हो चुकी होती पिता को खोकर पिता को पाया

ढोते  तुम  कठोर  की  संज्ञा,  नेह  से  तुम  वंचित  रह जाते

अम्मा – अम्मा  गूँजा  करता  तुम  केवल  दायित्व  निभाते   

 

बच्चे  केवल  फरमाइश  तक  पिता  के  पास  ठहरते  हैं

अगले  क्षण  अम्मा - अम्मा कर माँ का आँचल भरते हैं

थोड़ा   सा  ही   पिता  के   हिस्से    स्नेह   को  धरना

अम्मा के तुम रहो दुलारे किन्तु पिता के पास भी रहना

 

पवन तिवारी

संवाद : ७७१८०८०९७८

१२/१०/२०२०

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें