यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 18 जनवरी 2022

खेत और ज़हर


 एक लम्बी अवधि के बाद

अपनी फसलों के पिता

खेत से मिला .

मन किया हाल चाल पूछूँ

उसके चेहरे पर उदासी थी

मैंने सकुचाते हुए पूछा-

कैसे हैं खेत महाराज ?

वह झुँझलाते हुए बोला-

किस चीज का महाराज?

मुझे तो आप ने दरिद्र और

हमारे बच्चों को

बना दिया है नशेड़ी

आप सबने पूरी खेती की

नस्ल ही खराब कर दी.

मैं आश्चर्य में पड़ गया.

सुनकर खेत बात

मैंने अटकते हुए कहा-

आप के बच्चे तो खुश और

स्वस्थ लग रहे हैं

कितने हरे भरे हैं,

लहलहा रहे हैं

मुझे मारते हैं.

मेरा खून चूसते हैं

दस दिन नशा न मिले तो

पीलिया सा हो जाता है.

मुरझा जाते हैं. इन्हें

डाई,यूरिया, पोटाश और जिंक जैसे –

खतरनाक नशे की आदत आप ने

अपने स्वार्थ के लिए धरा दिया है.

मेरा शरीर खोखला हो गया है.

इनके दानों में भी वहीं ज़हर है

जिसे आप खाते हैं.

इसीलिये कैंसर, मधुमेह,और यकृत की

बीमारियाँ हो रही हैं.

बिना नशे के अब ज़िंदा

नहीं रह सकते .

अब भी अवसर है.

गोबर की ओर

घूर की ओर लौटिये

देसी खाद, राखी लाइए

वही हमे, हमारे बच्चों

और आप को भी

स्वस्थ रख पायेगी.

खेत ने हाथ जोड़ लिए.

मैं शर्मिंदा, सर झुकाये

कुछ देर  खड़ा रहा और

फिर भारी क़दमों से

मेंड़ पर चलते हुए

मुख्य सड़क पर आकर

आसमान की ओर

हताशा में देखने लगा.

 

पवन तिवारी

संवाद- ७७१८०८०९७८

१३/१०/२०२०

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