होके
अपना भी वो लगता ही नहीं
एक सोया है
कि जगता ही नहीं
कदम
कदम हैं ठग और लूटने वाले
और
हम चाहें जिसे वो तो ठगता ही नहीं
इत्र
लग के भी महकता ही नहीं
होके
सब कुछ भी दमकता ही नहीं
दर्द
मँहगा हुआ खुशियाँ सस्ती
और
इक वो कि समझता ही नहीं
रंग
उस पर कोई चढ़ता
ही नहीं
बिन
कहे खुद से कि बढ़ता ही नहीं
स्वप्न
राजा के उसने
देखे हैं
दे
दो तलवार तो लड़ता ही नहीं
जिसको
है प्यार वो कहता ही नहीं
मरने
को कहता है मरता ही नहीं
रोना
वो चाहता है दिखता
है
पलकों
पे आके भी बहता ही नहीं
हँसी
की बात पर हँसता ही नहीं
जैसे
दिल के लिए रस्ता ही नहीं
किन्तु
दो बोल प्यार से कह दो
फिर
तो उससे कोई सस्ता ही नहीं
पवन
तिवारी
संवाद-
७७१८०८०९७८
१४/१०/२०२०
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