यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 18 जनवरी 2022

होके अपना भी वो लगता ही नहीं

होके अपना भी वो लगता ही नहीं

एक  सोया  है कि जगता ही  नहीं

कदम कदम हैं ठग और लूटने वाले

और हम चाहें जिसे वो तो ठगता ही नहीं

 

इत्र  लग  के  भी  महकता ही नहीं

होके  सब कुछ भी दमकता ही नहीं

दर्द  मँहगा  हुआ  खुशियाँ   सस्ती

और इक वो कि  समझता ही नहीं

 

रंग  उस पर  कोई  चढ़ता ही नहीं

बिन कहे खुद से कि बढ़ता ही नहीं

स्वप्न   राजा   के  उसने    देखे  हैं

दे दो तलवार तो लड़ता  ही नहीं

 

जिसको है प्यार वो कहता ही नहीं

मरने को कहता  है मरता ही नहीं

रोना  वो  चाहता  है  दिखता है  

पलकों पे आके भी बहता ही नहीं

 

 

हँसी की बात पर हँसता ही नहीं

जैसे दिल के लिए रस्ता ही नहीं

किन्तु दो बोल  प्यार से कह दो

फिर तो उससे कोई सस्ता ही नहीं

 

पवन तिवारी

संवाद- ७७१८०८०९७८

१४/१०/२०२०

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