यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

सोमवार, 24 जनवरी 2022

जो भी मित्रों को छलता है

जो भी मित्रों को छलता है

संत्रासों से  वो  जलता  है

पग-पग खाता वह ठोकर है

जीवन रातों सा वह पलता है

 

पुण्य क्षरित हो जाते हैं

असमय ही दुःख पाते हैं

सम्बंधी भी छूटने लगते

घर  में  कलेश  आते  हैं

 

स्वास्थ्य का भी क्षय होता है

स्नेह जनों का खोता है

अक्सर हँसने वाला मुख

दृग में आँसू ढोता है

 

संताने भी पीड़ा सहती

मन में सदा रुग्णता रहती

समृद्धि दूर भागती ऐसे

लगता जैसे छलिया कहती

 

पवन तिवारी

संवाद- ७७१८०८०९७८

१८/११/२०२०  

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