जो
भी मित्रों को छलता है
संत्रासों
से वो
जलता है
पग-पग
खाता वह ठोकर है
जीवन
रातों सा वह पलता है
पुण्य
क्षरित हो जाते हैं
असमय
ही दुःख पाते हैं
सम्बंधी
भी छूटने लगते
घर में
कलेश आते हैं
स्वास्थ्य
का भी क्षय होता है
स्नेह
जनों का खोता है
अक्सर
हँसने वाला मुख
दृग
में आँसू ढोता है
संताने
भी पीड़ा सहती
मन
में सदा रुग्णता रहती
समृद्धि
दूर भागती ऐसे
लगता
जैसे छलिया कहती
पवन
तिवारी
संवाद-
७७१८०८०९७८
१८/११/२०२०
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