कर्मों
का लेखा भरते हैं
झूठ-मूठ
का भ्रम धरते हैं
माने
या ना माने
कोई
पर
सच उससे सब डरते हैं
करने
को वो ही सब करता
और
समझते हम
करते हैं
धन
बल बुद्धि फिर भी हारे
तब उसके आगे
झरते हैं
मरना
तो उसकी राहों में
वैसे
तो सब ही
मरते हैं
पवन
तिवारी
संवाद-
७७१८०८०९७८
०२/०३/२०२१
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