किसी
के वास्ते तुम
जूझ जाते
किसी
के वास्ते अपना गँवाते
जरा
सी बात पर वो ही बिदकता
कि
जिसके वास्ते खुद को खपाते
आज-कल दोस्ती में
दाग मिलती
परायों
से भी जब तब राग मिलती
जिन्हें
समझा किये अपने नहीं वो
कभी
तो फूल
ढूंढो बाग़ मिलती
कि
अब तो तोल कर रिश्ते चले हैं
सभी
अपने ही तो ज्यादा खले हैं
दूर
नजदीक होना तय
करे धन
कि जिनसे कुछ
नहीं वे जले है
गज़ब संसार
होता जा रहा है
आदमी
खुद को खोता जा रहा है
आदमी चाहता
पाना बहुत है
इसी
से और
रोता जा रहा है
अपेक्षा
से अगर तुम बच सके तो
और
इच्छा पराजित कर सके तो
बचोगे
दुःख से थोड़ा हँस सकोगे
थोड़ा
अपने में यदि रह सके तो
पवन
तिवारी
संवाद
– ७७१८०८०९७८
२४/११/२०२०
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