अपनी
कहानियों के तो कथ्य बोलते हैं
कुछ
खुद नहीं है कहना सब तथ्य बोलते हैं
लहज़ा
बता रहा है,
हैं क्या बोल रहे
इक
आप कह रहे कि वो
सत्य बोलते हैं
जिनको
कहे हैं स्थिर हर द्वार डोलते हैं
वो
आदमी अलग हैं चुपचाप बोलते हैं
कुछ
को समझने में लग जाता ज़माना
सारी
ही रस्सियों के कुछ गाँठ खोलते हैं
रो -
रो के सही हाल सुनाते जरुर हैं
आओ
कि न आओ जी बुलाते जरूर है
कैसे
भी हैं,
पर हैं, पक्के वसूल के
कि मारने से पहले खिलाते जरुर हैं
पवन
तिवारी
संवाद-
७७१८०८०९७८
२७/११/२०२०
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