द्वार
पर तुम्हरे सदा आता रहा हूँ मैं
ज्ञान
के मोती सदा पता रहा
हूँ मैं
तुम्हारी
महिमा है अनंत अकथ्य माते
किन्तु दो
वरदान कि गाता
रहूँ मैं
शांति का
संदेश जग को दे सकूँ
मैं
राष्ट्र को
उदात्त गौरव दे सकूँ
मैं
भारती
के लाल फिर से जग सकें माँ
ऐसे
कुछ संवाद फिर से
दे सकूँ मैं
तिमिर
का फैलाव होता जा रहा है
सत्य
का अवसान होता जा रहा है
सत्य
के दीपक का मुझको शस्त्र दे दो
धरणी
का अपमान होता जा रहा है
छल
से पोषित ह्रदय को भी धवल कर दो
चाहता हूँ
कोंपलों सा नवल कर दो
मानवीपन
जग में फिर से व्याप्त हो माँ
अपने करुणा
शस्त्र से तुम कँवल कर दो
पवन
तिवारी
संवाद
– ७७१८०८०९७८
०४/१२/२०२०
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