यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

मंगलवार, 18 जनवरी 2022

साँसों की घरघराहट

 


 

सबको लगती है भूख ,

प्यास सबको लगती है ,

दुःख सबका है;

घाव लगने पर

पीड़ा सबको होती है !

प्रेम सब चाहते हैं .

प्रशंसा सबको अच्छी लगती है.

अपमान कोई नहीं चाहता !

सबको ख़ुशी चाहिए.

और बहुत कुछ

समानता है सब में,

इन सबके बावजूद

अलग है बहुत कुछ ;

सोचता हूँ कभी घूमूँ,

जहाँ तक घूम सकूँ और

महसूस कर सकूँ

अलग-अलग समय खण्ड की

साँसों को और

मिला कर देख सकूँ

अपनी साँसों की घरघराहट !

मेरा भ्रम बना रहे या टूटे ,

बस ! चाहता हूँ.

इसका उत्तर नहीं है  शायद अभी;

इस क्षण तक मेरे पास !

 

 

पवन तिवारी

संवाद : ७७१८०८०९७८

१०/१०/२०२०

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें