सबको
लगती है भूख ,
प्यास
सबको लगती है ,
दुःख
सबका है;
घाव
लगने पर
पीड़ा
सबको होती है !
प्रेम
सब चाहते हैं .
प्रशंसा
सबको अच्छी लगती है.
अपमान
कोई नहीं चाहता !
सबको
ख़ुशी चाहिए.
और
बहुत कुछ
समानता
है सब में,
इन
सबके बावजूद
अलग
है बहुत कुछ ;
सोचता
हूँ कभी घूमूँ,
जहाँ
तक घूम सकूँ और
महसूस
कर सकूँ
अलग-अलग
समय खण्ड की
साँसों
को और
मिला
कर देख सकूँ
अपनी
साँसों की घरघराहट !
मेरा
भ्रम बना रहे या टूटे ,
बस
! चाहता हूँ.
इसका
उत्तर नहीं है शायद अभी;
इस
क्षण तक मेरे पास !
पवन
तिवारी
संवाद
: ७७१८०८०९७८
१०/१०/२०२०
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