कान्हा जन्म लिए काल की कोठरिया में
रात अंधियारिया में
ना
कान्हा जन्में हैं
जब,
पहरेदार सोये तब
ताला खुल गया है
मथुरा नगरिया में
रात अंधियारिया में
ना
पहरेदार सोये जब
ताला खुल गया है तब
चमत्कार हुआ कारा की
कोठरिया में
रात अंधियारिया में
ना
हुई आकाशवाणी
सुनो देवकी प्यारी
पूत ले जाओ गोकुला
नगरिया में
रात अंधियारिया में
ना
जाओ नन्द जी के
द्वार
हुई बेटी सुकुमारि
उसे ले आओ मथुरा की
जेलिया में
रात अंधियारिया में
ना
चले वसुदेव जब
बरखा बढ़ गयी है तब
भीगते ही चले मथुरा
की डगरिया में
रात अंधियारिया में
ना
पहुंचे जमुना जी के
तीर
उनका बढ़ने लगा नीर
शेषनाग ढके कान्हा
को पनियां में
रात अंधियारिया में
ना
पहुँचे नन्द जी के
द्वार
किये अंतिम दुलार
बिटिया ले आये कंस
की नगरिया में
रात अंधियारिया में
ना
बसुदेव आये जब
पहरेदार जागे तब
बिटिया रोने लगी भोर
की पहरिया में
रात अंधियारिया में ना
कंस आया फटाफट
कन्या उठा लिया झट
कन्या छूट गयी
पहुँची अकसिया में
रात अंधियारिया में
ना
कन्या बोली सुन रे
कंस
तेरा होगा विध्वंस
तेरा काल तो है
गोकुला नगरिया में
रात अंधियारिया में
ना
पवन तिवारी
सम्वाद – ७७१८०८०९७८
०६/१०/२०२०
( यह रचना १९९९ में लिखी गयी थी,किन्तु रचना खो जाने के कारण २२ साल बाद स्मृतियों के आधार पर पुनर्लेखन )
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