नभ की बस्ती
में रहते हैं
जग भीगने से डरता है वे
जल की कश्ती
में रहते हैं
जिनसे जीवन के रथ
चलते
उन पर वे आरूढ़ हो चलते
अपने मन
के राजा हैं वे
सूरज ढंकते चलते – चलते
थिर ये
कभी नहीं रहते हैं
नदी के
जैसे ये बहते
हैं
इनसे सीखें
जीवन जीना
चलते रहो
यही कहते हैं
अपना सब
धरती को देते
बदले में
कुछ कभी न लेते
परहित में
भटका करते हैं
अम्बर में
नइया खेते हैं
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
28/08/2020
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