कुछ अपने लिए जीते मरते
कुछ दूजों के लिये
गाते हैं
कुछ सुख में भी रोते रहते
कुछ दुःख में भी मुस्काते हैं
कुछ स्वारथ देख चले
आते
कुछ स्वार्थ देख के जाते हैं
कुछ भाग - भाग के हैं जाते
कुछ बिन
मांगे ही पाते हैं
कुछ दूजों पर
जीते खाते
कुछ ख़ुद ही कमा के
खाते हैं
कुछ जलते हैं अपनों से ही
कुछ गैरों को
भी भाते हैं
जन दुनिया में बहु भांति रहे
जो जैसे वैसे पाते हैं
जिनको अधिंयारा
प्रिय लगता
वे रात में
अक्सर आते हैं
जिनको जीवन से प्रेम
पवन
वे जीवन को पा जाते
है
जो सत्य के सहचर रहे
सदा
प्रभु उनको गले
लगाते हैं
पवन तिवारी
सम्वाद – ७७१८०८०९७८
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