यूँ निरर्थक हँस
चुके हो तो कहो कुछ बात कर लूँ
रचना अपमानित है
बैठी उसकी सुन कुछ बात कर लूँ
कविता कविता कर रहे
हो क्या मिले हो कविता से
ओ जो अधनंगी पड़ी
है कविता है कुछ बात कर लूँ
हो गयी हो मसखरी तो
काम की कुछ बात कर लूँ
हा हा हू हू छोड़ के साहित्य
पर कुछ बात कर लूँ
शारदा के पुत्र
हो तो तुम
कोई रचना सुनाओ
चुप हो समझा, चाहते
कुछ चुटकुलों पर बात कर लूँ
चाहता हूँ आज मैं भी मंच
से कुछ बात कर लूँ
कविता नौटंकी नहीं
है इस पे भी कुछ बात कर लूँ
चाहो जो
तुम वो छपे
संकेत ये अच्छा नहीं
चाहते हो मैं लिफाफा
देखकर कुछ बात
कर लूँ
बिकने वाले और हैं
विद्रोह की कुछ बात कर लूँ
सत्य को भी है जगह
तो फिर कहो कुछ बात कर लूँ
अब न कविता नग्न
होगी ना ही ये अभिनय करेगी
तुम हो संयोजक चलो
कवियों से ही कुछ बात कर लूँ
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
३०/०८/२०२०
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