हे रामचन्द्र
किस-किस के हुए
जिसने माना तिस-तिस
के हुए
कौशल्या के तो लाल
हुए
दशरथ चाहे सो बाल
हुए
हनुमत ने चाहा मीत
हुए
तुलसी ने चाहा प्रीत
हुए
केवल तुम सबके हीत
हुए
मानस ने गाया गीत
हुए
केवट के तारन हार
हुए
देवों खातिर अवतार
हुए
नल-नील के हिय के
हार हुए
सागर पत्थर से पार
हुए
गौतमी के दुःख का
अंत हुए
शबरी के लिए तुम संत
हुए
सुग्रीव की खातिर मित्र हुए
बाकी हे हिय के
चित्र हुए
रावण ने चाहा अरि हो
गये
शरभंग ने मना हरि हो
गये
तुम मनुज नहीं
ज्यादा हो गये
जीवन की मर्यादा हो
गये
तुम्हें कुम्भकर्ण
चाहा थाहा
देखा तो मुग्ध हुआ
आहा
केवल तुमने शिव को
चाहा
शिव ने तुमको हंसकर
गाहा
चाहा वशिष्ठ ने
शिष्य हुए
तुम अवध पुरी के
भविष्य हुए
अन्यों के प्रभु
अनन्य हुए
जन हिय के हित
सौजन्य हुए
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
०५/०८/२०२०
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