यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

गुरुवार, 17 जून 2021

गीतों को झुठलाने वालों

गीतों को झुठलाने वालों गीतों से ही धाम मिलेगा

पीड़ा के पाँवों को मेरे गीतों से आराम मिलेगा

लौट के एक दिन आओगे तुम धन की खातिर त्यागने वालों

दुःख की सर्दी जब घेरेगी इन गीतों से घाम मिलेगा

 

धन पाकर भी चिंता होगी मन का का कोई काम न होगा

सारा वैभव फीका होगा समय पर कोई काम न होगा

तब स्मरण मेरा आयेगा स्मृति का उपवन छायेगा

गीत लिए मैं खड़ा मिलूँगा और तो कोई नाम न होगा

 

जिस तन से था प्रेम किया जब उससे ही छल पाओगे

हँसने वाले घर से ही जब रोते – रोते जाओगे

बहते आँसू सब देखेंगे कोई भी ना पोंछेगा

ऐसे में ये गीत तुम्हें और तुम गीतों को गाओगे

 

छल से हुए पराजित वीरों को मेरे गीत समर्पित होंगे

सीमा पर जो लिए तिरंगा गीत मेरे उन्हें अर्पित होंगे

एक दिन ये जग ढूंढेगा इस आवारा फक्कड़ को भी

मेरे गीतों से जन के दुःख गा गाकर के तर्पित होंगे

 

पवन तिवारी

संवाद – ७७१८०८०९७८

२९/०७/२०२०   

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