यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

शुक्रवार, 8 मई 2020

मनुष्य और वृक्ष


क्या सब कुछ अनदेखा कर
अपने लिए जीना ही जीवन है या
जीवन का सत्य है.
या, है सबसे बड़ी कायरता !
या फिर निचले दर्जे का स्वार्थ,
समाज की परेशानियों, दुखों
अवरोधों और उलझनों  को
कम करने में योगदान
करने के बजाय भागना
क्या जीवन से भागना नहीं है ?
फिर तो मनुष्य होने से अच्छा वृक्ष होना है.
 कम से कम वह भागता तो नहीं.
एक जगह रहता है स्थिर.
दौड़ता नहीं किसी की सहायता के लिए
किन्तु जो आता है उसके पास
उसके आतिथ्य में नहीं रहता पीछे.
देता है छाया, फल और शुद्ध हवा ;
इन सबके बाद भी कुछ लोग
काट देते हैं उसके अंग !
फिर भी वह अपनी प्रतिबद्धता से
होता नहीं विचलित.
तो क्या अब सदा के लिए
तय हो गया है कि
बस ! अपने लिए जीने वालों से
सदा के लिए श्रेष्ठ हो गया है वृक्ष !
या पहले से ही है! तभी
कुछ लोग पूजते हैं उसे या
अपने ऐसे वंशजों के कृत्य पर जताते हैं शोक

पवन तिवारी
संवाद- ७७१८०८०९७८         

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