कभी-कभी मेरे साथ जब केवल मैं होता हूँ.
तो एक जुमला आता है
और मेरे गाल पर
एक तमाचा मारकर
हँसते हुए भाग जाता है.
उसका नाम है –
‘चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा’
पता है- वो जुमला
खुद चिंता में रहता है और
अपनी चिंता से उपजी
खीझ मुझे मारकर
तुष्ट करने का असफल प्रयास
करता है.
कभी सोचा है जिसकी
छत छिन गयी हो,
जो अपनी जवान बेटी
की शादी के लिए
वर्षों से हो
प्रयासरत
जिसका पेट हो कई
दिनों से भूखा
जिसका बेटा अस्पताल
में जिंदगी और
मौत के बीच झूल रहा
हो !
जिसकी वर्षों की
नौकरी अचानक चली गयी हो,
जिसका बाढ़ में अचानक
सब कुछ बह गया हो,
जिसे सोते से पुलिस
उठाकर ले गयी हो और
उसे पता ही न हो कि
पुलिस क्यों उठा ले आयी ?
फीस समय से न भरने
के कारण
जिसकी बेटी को निकाल
दिया गया हो विद्यालय से,
जिसको सिर्फ गरीब
होने के कारण
खोनी पड़ी हो अपनी
प्रेमिका.
खानी पड़ी हो मार,
उससे कहना- ‘चिंता
मत करो’
क्या उसके गाल पर
तमाचा मार कर
हँसना नहीं है !
क्या ‘चिंता’
योजनाबद्ध तरीके या
प्रयास के द्वारा
करने की चीज है.
‘चिंता’ हो जाती है.
समस्या के समाधान न
होने का
नाम ‘चिंता’ है. कोई
समस्या में होकर
कैसे सुखी रह सकता
है ?
कई बार सांत्वना का यह
जुमला
ज्यादा बड़ा थप्पड़
लगता है और
मैं अकेले में सोचते हुए
सुन्न हो
जाता हूँ.
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
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