जीवन में जाने कितना
कुछ
चुपचाप और
अप्रत्याशित
आता है, छा जाता है.
जीवन के बंद द्वार
कितने
कुछ समय में ही है
दिखलाता ;
कुछ बनी बनाई राहों
को
चुटकी में ध्वस्त कर
जाता है.
हमसे ही कुछ नई-नई
वह
पगडंडी बनवाता है.
कुछ नयी खिड़कियाँ
खुलवाता,
कुछ दीवारें तुड़वाता
है.
कुछ इधर उधर करवाने
में
जीवन ज्यादा ले जाता
है.
चुपचाप और
अप्रत्याशित से
डिगना न ज़रा भी
घबराना ;
इनसे मिलना सम्मान
सहित
पर अपना भी आदर रखना
!
फिर जीवन खर्च तभी
होगा,
जब जितना जैसे
चाहोगे.
खुशियाँ दुःख जो भी
आयेगा,
तुम सहज उसे
अपनाओगे.
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक –
poetpawan50@gmail.com
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