यह ब्लॉग अठन्नी वाले बाबूजी उपन्यास के लिए महाराष्ट्र हिन्दी अकादमी का बेहद कम उम्र में पुरस्कार पाने वाले युवा साहित्यकार,चिंतक,पत्रकार लेखक पवन तिवारी की पहली चर्चित पुस्तक "चवन्नी का मेला"के नाम से है.इसमें लिखे लेख,विचार,कहानी कविता, गीत ,गजल,नज्म व अन्य समस्त सामग्री लेखक की निजी सम्पत्ति है.लेखक की अनुमति के बिना इसका किसी भी प्रकार का उपयोग करना अपराध होगा...पवन तिवारी

बुधवार, 6 मई 2020

टुकड़ा ही ज़िंदगी है.



यदि कोई तुम्हें रोटी का टुकड़ा दे
या कुछ भी थोड़ा या थोड़ा-थोड़ा दे
तो दुखी मत होना, बल्कि होना ख़ुश
देना धन्यवाद, क्योंकि
यही सच्ची ज़िंदगी है !
शायद तुमने कभी ज़िन्दगी को
ध्यान से देखने या समझने की
कोशिश ही नहीं की, इसीलिये
टुकड़े ‘शब्द’ या ‘थोड़े’ से
हो जाते हो दुखी या फिर नाराज़ !
इस पर बने हैं मुहावरे भी,
जैसे- ‘फेंके हुए टुकड़े’ किन्तु
हमारी ज़िन्दगी
इन्हीं टुकड़ों से जुड़कर बनी है.
चलो तुम्हें जिंदगी के पास ले चलता हूँ.
मेरी बातों पर देना ध्यान !
जब हम पैदा होते हैं
हमें दूध टुकड़ों में मिलता है.
पहले माता – पिता फिर भाई – बहन
फिर भतीजे, पत्नी, साले
और फिर बनते हैं दादा, नाना आदि
यह सब रिश्ते
टुकड़ों में ही तो मिलते हैं.
पहले एक आया, फिर दो, फिर तीन
चलना भी तो टुकड़ों में मिला.
पहले खड़े हुए, फिर एक पग चले
फिर पड़े, फिर दो पग चले,
फिर तीन क्रमशः
दांत भी थोड़े-थोड़े आते हैं.
इसी तरह स्वाद,शिक्षा, बचपन
किशोर, युवा, सुन्दरता, सफलता
परिवार,धन सब थोड़ा – थोड़ा
टुकड़ों में मिला और फिर
टुकड़ों में चला भी गया.
धीरे-धीरे टुकड़ों में जवानी जाती है.
दांत जाते हैं. बाल जाते हैं
सौन्दर्य और स्वास्थ्य जाता है.
शक्ति जाती है और
थोड़ा-थोड़ा हम जाते हैं.
फिर एक दिन हम
टुकड़ों में खर्च होते-होते
पूरा खर्च हो जाते हैं.
मतलब चले जाते हैं.
यहीं टुकड़े मिलकर
बनाते हैं पूरी जिन्दगी !
ऐसे में यदि टुकड़े मिलें तो,
दुखी या निराश मत होना ;
क्योंकि ये टुकड़े ही जिंदगी हैं.

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com  


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