नभ मेरा है
शिरोभूषण
वर्षा से
अनुबंध मेरा
जिस हुताशन से डरे जग
वो ही है मणिबन्ध
मेरा
हिम हमारे
पूज्य का
गृह
शीत से
संबंध मेरा
राष्ट्र पर बलिदान
सब कुछ
प्रेम पर
तटबंध मेरा
रवि तो घर के
देवता हैं
क्या करेगा
फिर अन्धेरा
जिस धरा के राम प्रेरणा
वहाँ होगा
धर्म प्रेरणा
शारदा के पुत्र हैं हम
वेद की रखते हैं
माला
काले – काले अक्षरों
से
ज्ञान का
फैला उजाला
याद है
ये वो है भारत
शार्दुल के
दांत गिनता
सबसे पहले द्वार जिसके
सविता का प्रकाश
भिनता
संस्कृति उदात्त
ऐसी
जग के सुख की कामना
जगत है परिवार अपना
ऐसी अपनी भावना
तिस पे भी घमंड वश
करे जो कोई प्रहार
है
ऐसे में ये शिव का देश
फिर करे
संहार है
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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