ज़मीर क्या गया कि
ज़मीं आसमान गया
मान की बात क्या पूरा ही स्वाभिमान गया
गिरना तो ठीक मगर अपनी नज़र में गिरना
फिर तो ऐसा समझ कि
जीने का सामान गया
जिसके ख़ातिर लड़े
दुश्मन भी बेशुमार किये
वो ही नाराज़ तो फिर जीने का अरमान गया
हो भले यार
की महफ़िल बिना न्यौते न जा
ज़रा भी बेरुख़ी हुई कि सम्मान गया
कई दिन ठहर के
लौटोगे किसी के घर से
सभी घर वाले
कहेंगे चलो मेहमान
गया
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक –
poetpawan50@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें